दर्द मिन्नत-कशे-दवा न हुआ | मिर्ज़ा ग़ालिब | हिंदी शायरी

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी शायरी (Hindi Poetry) दर्द मिन्नत-कशे-दवा न हुआ लेकर आया हूँ और इस कविता को मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है.

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दर्द मिन्नत-कशे-दवा न हुआ | मिर्ज़ा ग़ालिब | हिंदी शायरी
दर्द मिन्नत-कशे-दवा न हुआ | मिर्ज़ा ग़ालिब | हिंदी शायरी

दर्द मिन्नत-कशे-दवा न हुआ – मिर्ज़ा ग़ालिब – हिंदी शायरी

दर्द मिन्नत-कशे-दवा न हुआ
मैं न अच्छा हुआ, बुरा न हुआ

जमा करते हो कयों रकीबों को ?
इक तमाशा हुआ गिला न हुआ

हम कहां किस्मत आज़माने जाएं
तू ही जब ख़ंजर-आज़मा न हुआ

कितने शरीं हैं तेरे लब कि रकीब
गालियां खा के बे मज़ा न हुआ

है ख़बर गरम उनके आने की
आज ही घर में बोरीया न हुआ

क्या वो नमरूद की ख़ुदायी थी
बन्दगी में मेरा भला न हुआ

जान दी, दी हुयी उसी की थी
हक तो यह है कि हक अदा न हुआ

ज़ख़्म गर दब गया, लहू न थमा
काम गर रुक गया रवां न हुआ

रहज़नी है कि दिल-सितानी है
ले के दिल, दिलसितां रवाना हुआ

कुछ तो पढ़ीये कि लोग कहते हैं
आज ‘ग़ालिब’ ग़ज़लसरा न हुआ

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी शायरी दर्द मिन्नत-कशे-दवा न हुआ अच्छा लगा होगा जिसे मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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