धमकी में मर गया, जो न बाबे-नबरद था | मिर्ज़ा ग़ालिब | हिंदी शायरी

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी शायरी (Hindi Poetry) “धमकी में मर गया, जो न बाबे-नबरद था” लेकर आया हूँ और इस कविता को मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है.

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धमकी में मर गया, जो न बाबे-नबरद था | मिर्ज़ा ग़ालिब | हिंदी शायरी

धमकी में मर गया, जो न बाबे-नबरद था – मिर्ज़ा ग़ालिब – हिंदी शायरी

धमकी में मर गया, जो न बाबे-नबरद था
इशके-नबरद पेशा, तलबगारे-मरद था

था ज़िन्दगी में मरग का खटका लगा हुआ
उड़ने से पेशतर भी मेरा रंग ज़रद था

तालीफ़े-नुसखाहा-ए वफ़ा कर रहा था मैं
मजमूअ-ए-ख़याल अभी फ़रद-फ़रद था

दिल ता ज़िग़र, कि साहले-दरीया-ए-खूं है अब
इस रहगुज़र में जलवा-ए-गुल आगे गरद था

जाती है कोई कशमकश अन्दोहे-इशक की
दिल भी अगर गया, तो वही दिल का दर्द था

अहबाब चारा-साजीए-वहशत न कर सके
ज़िन्दां में भी ख़याल, बयाबां-नबरद था

यह लाश बेकफ़न, ‘असदे’-ख़सता-जां की है
हक मगफ़िरत करे, अजब आज़ाद मरद था

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी शायरी धमकी में मर गया, जो न बाबे-नबरद था अच्छा लगा होगा जिसे मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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