ज़िंदगी की कहानी | जानकीवल्लभ शास्त्री | हिंदी कविता

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी कविता (Hindi Poem) “ज़िंदगी की कहानी” लेकर आया हूँ और इस कविता को जानकीवल्लभ शास्त्री (5 Feb 1916-07 Apr 2011)जी ने लिखा है. आप बिहार के मैगरा के रहने वाले थे.

आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह कविता पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी कवितायेँ पढने का मन है तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).

ज़िंदगी की कहानी जानकीवल्लभ शास्त्री हिंदी कविता
ज़िंदगी की कहानी जानकीवल्लभ शास्त्री हिंदी कविता

जिंदगी की कहानी रही अनकही
 दिन गुजरते रहे, सांस चलती रही.

अर्थ क्या? शब्द ही अनमने रह गए

कोष से जो खिंचे तो तने रह गए

वेदना अश्रु-पानी बनी, बह गई

धूप ढलती रही, छांह छलती रही.

बांसुरी जब बजी कल्पना-कुंज में

चांदनी थरथराई तिमिर पुंज में

 पूछिए मत कि तब प्राण का क्या हुआ

आग बुझती रही, आग जलती रही.

जो जला सो जला,खाक खोदे बला

मन न कुंदन बना, तन तपा, तन गला

कब झुका आसमां, कब रुका कारवां

द्वंद्व चलता रहा पीर पलती रही.

बात ईमान की या कहो मान की

चाहता गान में मैं झलक प्राण की

साज सजता नहीं, बीन बजती नहीं

उंगलियां तार पर यों मचलती रहीं.

और तो और वह भी न अपना बना

आंख मूंदे रहा, वह न सपना बना

चांद मदहोश प्याला लिए व्योम का

रात ढलती रही, रात ढलती रही.

यह नहीं जानता मैं किनारा नहीं

 यह नहीं, थम गई वारिधारा कहीं

जुस्तजू में किसी मौज की, सिंधु के

थाहने की घड़ी किन्तु टलती रही.

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी कविता “ज़िंदगी की कहानी” अच्छा लगा होगा जिसे जानकीवल्लभ शास्त्री जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook PageLinkedinInstagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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