ज़िक्र उस परीवश का और फिर बयां अपना | मिर्ज़ा ग़ालिब हिंदी शायरी
आपके सामने हिंदी शायरी (Hindi Poetry) “ज़िक्र उस परीवश का और फिर बयां अपना, सब कहां ? कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायां हो गईं और मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं” लेकर आया हूँ और इस शायरी को मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है.
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