नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी शायरी (Hindi Poetry) “मेरे शौक दा नहीं इतबार तैनूं” लेकर आया हूँ और इस शायरी को मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है.
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![मेरे शौक दा नहीं इतबार तैनूं | मिर्ज़ा ग़ालिब | हिंदी शायरी 7 Moral मेरे शौक दा नहीं इतबार तैनूं](https://7moral.com/wp-content/uploads/2021/12/%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%87-%E0%A4%B6%E0%A5%8C%E0%A4%95-%E0%A4%A6%E0%A4%BE-%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82-%E0%A4%87%E0%A4%A4%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%A4%E0%A5%88%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%82.jpg)
मेरे शौक दा नहीं इतबार तैनूं – मिर्ज़ा ग़ालिब – हिंदी शायरी
मेरे शौक दा नहीं इतबार तैनूं,
आजा वेख मेरा इंतज़ार आजा.
ऐवें लड़न बहानने लभ्भना एं,
की तूं सोचना एं सितमगार आजा.
भावें हिजर ते भावें विसाल होवे,
वक्खो वक्ख दोहां दियां लज़्ज़तां ने,
मेरे सोहण्यां जाह हज़ार वारी,
आजा प्यार्या ते लक्ख वार आजा.
इह रिवाज़ ए मसजिदां मन्दरां दा
ओथे हसतियां ते ख़ुद-प्रसतियां ने,
मैख़ाने विच्च मसतियां ई मसतियां ने
होश कर बणके हुश्यार आजा.
तूं सादा ते तेरा दिल सादा
तैनूं ऐवें रकीब कुराह पायआ,
जे तूं मेरे जनाज़े ते नहीं आया
राह तक्कदै तेरी मज़ार आजा.
सुक्खीं वस्सना जे तूं चाहुना एं,
मेरे ‘ग़ालिबा’ एस जहान अन्दर,
आजा रिन्दां दी बज़म विच्च आ बहजा,
इत्थे बैठदे ने ख़ाकसार आजा.
Conclusion
तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी शायरी “मेरे शौक दा नहीं इतबार तैनूं” अच्छा लगा होगा जिसे मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.
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मुझे नयी-नयी चीजें करने का बहुत शौक है और कहानी पढने का भी। इसलिए मैं इस Blog पर हिंदी स्टोरी (Hindi Story), इतिहास (History) और भी कई चीजों के बारे में बताता रहता हूँ।