न गुल-ए-नग़मा हूं | मिर्ज़ा ग़ालिब हिंदी शायरी

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी शायरी (Hindi Poetry) न गुल-ए-नग़मा हूं लेकर आया हूँ और इस शायरी को मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है.

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न गुल-ए-नग़मा हूं - मिर्ज़ा ग़ालिब हिंदी शायरी
न गुल-ए-नग़मा हूं – मिर्ज़ा ग़ालिब हिंदी शायरी

न गुल-ए-नग़मा हूं – मिर्ज़ा ग़ालिब हिंदी शायरी

न गुल-ए-नग़मा हूं, न परदा-ए-साज़
मैं हूं अपनी शिकसत की आवाज़

तू, और आरायश-ए-ख़म-ए-काकुल
मैं, और अन्देशा-हाए-दूरो-दराज़

लाफ़-ए-तमकीं फ़रेब-ए-सादा-दिली
हम हैं, और राज़ हाए-सीना-ए-गुदाज़

हूं गिरफ़तारे उलफ़त-ए-सैयाद
वरना बाकी है ताकते परवाज़

वो भी दिन हो कि उस सितमगर से
नाज़ खींचूं बजाय हसरते-नाज़

नहीं दिल में तेरे वो कतरा-ए-ख़ूं
जिस से मिज़गां हुयी न हो गुलबाज़

मुझको पूछा तो कुछ ग़ज़ब न हुआ
मैं ग़रीब और तू ग़रीब-नवाज़

असदुललाह ख़ां तमाम हुआ
ऐ दरेग़ा वह रिन्द-ए-शाहदबाज़

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी शायरी न गुल-ए-नग़मा हूं अच्छा लगा होगा जिसे मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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