ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले-यार होता | मिर्ज़ा ग़ालिब हिंदी शायरी

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी शायरी (Hindi Poetry) ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले-यार होता लेकर आया हूँ और इस शायरी को मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है.

आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह शायरी पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी शायरी पढने की इच्छा हो तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).

ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले-यार होता - मिर्ज़ा ग़ालिब - हिंदी शायरी
ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले-यार होता – मिर्ज़ा ग़ालिब – हिंदी शायरी

ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले-यार होता – मिर्ज़ा ग़ालिब – हिंदी शायरी

ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता

तेरे वादे पे जीये हम तो ये जान झूठ जाना
कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता

तेरी नाज़ुकी से जाना कि बंधा था अहद बोदा
कभी तू न तोड़ सकता अगर उसतुवार होता

कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीरे-नीमकश को
ये खलिश कहां से होती जो जिगर के पार होता

ये कहां की दोसती है कि बने हैं दोसत नासेह
कोई चारासाज़ होता, कोई ग़मगुसार होता

रगे-संग से टपकता वे लहू कि फिर न थमता
जिसे ग़म समझ रहे हो ये अगर शरार होता

ग़म अगरचे जां-गुसिल है, पर कहां बचे कि दिल है
ग़मे-इशक ‘गर न होता, ग़मे-रोज़गार होता

कहूं किससे मैं कि क्या है, शबे-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना ? अगर एक बार होता

हुए मर के हम जो रुसवा, हुए कयों न ग़रके-दरिया
न कभी जनाज़ा उठता, न कहीं मज़ार होता

उसे कौन देख सकता, कि यग़ाना है वो यकता
जो दुयी की बू भी होती तो कहीं दो चार होता

ये मसाईले-तसव्वुफ़, ये तेरा बयान ‘ग़ालिब’
तुझे हम वली समझते, जो न बादाख़वार होता

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी शायरी ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले-यार होता अच्छा लगा होगा जिसे मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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