नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी शायरी (Hindi Poetry) “नुकताचीं है, ग़मे-दिल उसको सुनाये न बने” लेकर आया हूँ और इस शायरी को मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है.
आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह शायरी पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी शायरी पढने की इच्छा हो तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).
नुकताचीं है, ग़मे-दिल उसको सुनाये न बने – मिर्ज़ा ग़ालिब – हिंदी शायरी
नुकताचीं है, ग़मे-दिल उसको सुनाये न बने
क्या बने बात, जहां बात बनाये न बने
मैं बुलाता तो हूं उसको, मगर ऐ जज़बा-ए-दिल
उस पे बन जाए कुछ ऐसी, कि बिन आये न बने
खेल समझा है, कहीं छोड़ न दे भूल न जाये
काश ! यों भी हो कि बिन मेरे सताये न बने
ग़ैर फिरता है, लिये यों तेरे ख़त को कि अगर
कोई पूछे कि ये क्या है, तो छुपाये न बने
इस नज़ाकत का बुरा हो, वो भले हैं तो क्या
हाथ आयें, तो उनहें हाथ लगाये न बने
कह सके कौन कि ये जलवागरी किसकी है
परदा छोड़ा है वो उसने कि उठाये न बने
मौत की राह न देखूं, कि बिन आये न रहे
तुम को चाहूं कि न आयो, तो बुलाये न बने
बोझ वो सर से गिरा है कि उठाये न उठे
काम वो आन पड़ा है कि बनाये न बने
इशक पर ज़ोर नहीं, है ये वो आतश ‘ग़ालिब’
कि लगाये न लगे और बुझाये न बने
Conclusion
तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी शायरी “नुकताचीं है, ग़मे-दिल उसको सुनाये न बने” अच्छा लगा होगा जिसे मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.
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मुझे नयी-नयी चीजें करने का बहुत शौक है और कहानी पढने का भी। इसलिए मैं इस Blog पर हिंदी स्टोरी (Hindi Story), इतिहास (History) और भी कई चीजों के बारे में बताता रहता हूँ।