वो फ़िराक और वो विसाल कहां | मिर्ज़ा ग़ालिब | हिंदी शायरी

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी शायरी (Hindi Poetry) वो फ़िराक और वो विसाल कहां लेकर आया हूँ और इस शायरी को मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है.

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वो फ़िराक और वो विसाल कहां - मिर्ज़ा ग़ालिब - हिंदी शायरी
वो फ़िराक और वो विसाल कहां – मिर्ज़ा ग़ालिब – हिंदी शायरी

वो फ़िराक और वो विसाल कहां – मिर्ज़ा ग़ालिब – हिंदी शायरी

वो फ़िराक और वो विसाल कहां
वो शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहां

फ़ुरसत-ए-कारोबार-ए-शौक किसे
जौक-ए-नज़्ज़ारा-ए-जमाल कहां

दिल तो दिल वो दिमाग़ भी न रहा
शोर-ए-सौदा-ए-ख़त्त-ओ-ख़ाल कहां

थी वो इक शखस के तसव्वुर से
अब वो रानाई-ए-ख़याल कहां

ऐसा आसां नहीं लहू रोना
दिल में ताकत जिगर में हाल कहां

हमसे छूटा किमारख़ाना-ए-इशक
वां जो जावें, गिरह में माल कहां

फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूं
मैं कहां और ये वबाल कहां

मुज़मंहल हो गये कुवा ‘ग़ालिब’
वो अनासिर में एतदाल कहां

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी शायरी वो फ़िराक और वो विसाल कहां अच्छा लगा होगा जिसे मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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