मेहरबां हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वकत | मिर्ज़ा ग़ालिब | हिंदी शायरी

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी शायरी (Hindi Poetry) मेहरबां हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वकत लेकर आया हूँ और इस शायरी को मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है.

आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह शायरी पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी शायरी पढने की इच्छा हो तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).

मेहरबां हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वकत - मिर्ज़ा ग़ालिब - हिंदी शायरी

मेहरबां हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वकत – मिर्ज़ा ग़ालिब – हिंदी शायरी

मेहरबां हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वकत
मैं गया वकत नहीं हूं कि फिर आ भी न सकूं

जोफ़ में ताना-ए-अग़यार का शिकवा क्या है
बात कुछ सर तो नहीं है कि उठा भी न सकूं

ज़हर मिलता ही नहीं मुझको सितमगर वरना
क्या कसम है तिरे मिलने की कि खा भी न सकूं

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी शायरी मेहरबां हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वकत अच्छा लगा होगा जिसे मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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