दोसत ग़मखवारी में मेरी सअयी फ़रमायेंगे क्या | मिर्ज़ा ग़ालिब | हिंदी शायरी

मिर्ज़ा ग़ालिब हिंदी शायरी: नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी शायरी (Hindi Poetry) “दोसत ग़मखवारी में मेरी सअयी फ़रमायेंगे क्या” लेकर आया हूँ और इस कविता को मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है.

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दोसत ग़मखवारी में मेरी सअयी फ़रमायेंगे क्या | मिर्ज़ा ग़ालिब | हिंदी शायरी

दोसत ग़मखवारी में मेरी सअयी फ़रमायेंगे क्या – मिर्ज़ा ग़ालिब हिंदी शायरी

दोसत ग़मखवारी में मेरी सअयी फ़रमायेंगे क्या
ज़ख़्म के भरते तलक नाखुन न बढ़ जाएंगे क्या

बेन्याजी हद से गुज़री, बन्दा-परवर कब तलक
हम कहेंगे हाले-दिल और आप फरमायेंगे क्या ?

हज़रते-नासेह गर आएं दीदा-औ-दिल फरशे-राह
कोई मुझको यह तो समझा दो समझायेंगे क्या

आज वां तेग़ो-कफ़न बांधे हुए जाता हूं मैं
उजर मेरे कतल करने में वो अब लायेंगे क्या

गर कीया नासेह ने हमको कैद अच्छा ! यूं सही
ये जुनेने-इशक के अन्दाज़ छूट जायेंगे क्या

ख़ाना-ज़ादे-ज़ुल्फ़ हैं, जंज़ीर से भागेंगे कयों
हैं गिरिफ़तारे-वफ़ा, जिन्दां से घबरायेंगे क्या

है अब इस माअमूरा में कहते (कहरे)-ग़मे-उलफ़त ‘असद’
हमने यह माना कि दिल्ली में रहें खायेंगे क्या

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी शायरी दोसत ग़मखवारी में मेरी सअयी फ़रमायेंगे क्या अच्छा लगा होगा जिसे मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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