नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी शायरी (Hindi Poetry) “की वफा हमसे तो ग़ैर उसको जफ़ा कहते हैं” लेकर आया हूँ और इस शायरी को मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है.
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की वफा हमसे तो ग़ैर उसको जफ़ा कहते हैं – मिर्ज़ा ग़ालिब – हिंदी शायरी
की वफ़ा हमसे तो ग़ैर उसको जफ़ा कहते हैं
होती आई है कि अच्छों को बुरा कहते हैं
आज हम अपनी परेशानी-ए-ख़ातिर उनसे
कहने जाते तो हैं, पर देखीए क्या कहते हैं
अगले वकतों के हैं ये लोग इनहें कुछ न कहो
जो मै-ओ-नग़मा को अन्दोहरुबा कहते हैं
दिल में आ जाये है होती है जो फ़ुरसत ग़म से
और फिर कौन से नाले को रसा कहते हैं
है परे सरहदे-इदराक से अपना मसजूद
किबले को अहले-नज़र किबला नुमा कहते हैं
पाए-अफ़गार पे जब तुझे रहम आया है
खारे-रह को तेरे हम मेहर गिया कहते हैं
इक शरर दिल में है उससे कोई घबराएगा क्या
आग मतलूब है हमको जो हवा कहते हैं
देखीए लाती है उस शोख़ की नख़वत क्या रंग
उसकी हर बात पे हम नामे-ख़ुदा कहते हैं
वहशत-ओ-शेफ़ता अब मरसीया कहवें शायद
मर गया ग़ालिब-ए-आसुफ़ता-नवा कहते हैं
Conclusion
तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी शायरी “की वफा हमसे तो ग़ैर उसको जफ़ा कहते हैं” अच्छा लगा होगा जिसे मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.
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मुझे नयी-नयी चीजें करने का बहुत शौक है और कहानी पढने का भी। इसलिए मैं इस Blog पर हिंदी स्टोरी (Hindi Story), इतिहास (History) और भी कई चीजों के बारे में बताता रहता हूँ।