नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी शायरी (Hindi Poetry) “है बस कि हर इक उनके इशारे में निशां और” लेकर आया हूँ और इस कविता को मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है.
आशा करता हूँ कि आपलोगों को यह कविता पसंद आएगी. अगर आपको और हिंदी शायरीयेँ पढने का मन है तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं (यहाँ क्लिक करें).

है बस कि हर इक उनके इशारे में निशां और – मिर्ज़ा ग़ालिब – हिंदी शायरी
है बस कि हर इक उनके इशारे में निशां और
करते हैं मुहब्बत तो गुज़रता है गुमां और
या रब वो न समझे हैं न समझेंगे मेरी बात
दे और दिल उनको जो न दे मुझको ज़ुबां और
अबरू से है क्या उस निगाहे-नाज़ को पैबन्द
है तीर मुकररर मगर उसकी है कमां और
तुम शहर में हो तो हमें क्या ग़म जब उठेंगे
ले आयेंगे बाज़ार से जाकर दिल-ओ-जां और
हरचन्द सुबुकदसत हुए बुत शिकनी में
हम हैं तो अभी राह में हैं संगे-गिरां और
है ख़ूने-जिगर जोश में दिल खोल के रोता
होते जो कई दीदा-ए-ख़ून्नाबफ़िशां और
मरता हूं इस आवाज़ पे हरचन्द सर उड़ जाए
जल्लाद को लेकिन वो कहे जायें कि हां और
लोगों को है ख़ुरशीदे-जहां-ताब का धोका
हर रोज़ दिखाता हूं मैं इक दाग़े-नेहां और
लेता न अगर दिल तुमहें देता कोई दम चैन
करता जो न मरता कोई दिन आहो-फुगां और
पाते नहीं जब राह तो चढ़ जाते हैं नाले
रुकती है मेरी तबय तो होती है रवां और
हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अन्दाज़े-बयां और
Conclusion
तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी शायरी “है बस कि हर इक उनके इशारे में निशां और” अच्छा लगा होगा जिसे मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.
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