जहां तेरा नक्शे-कदम देखते हैं | मिर्ज़ा ग़ालिब | हिंदी शायरी

नमस्कार दोस्तों! आज मैं फिर से आपके सामने हिंदी शायरी (Hindi Poetry) “जहां तेरा नक्शे-कदम देखते हैं” लेकर आया हूँ और इस शायरी को मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है.

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जहां तेरा नक्शे-कदम देखते हैं - मिर्ज़ा ग़ालिब - हिंदी शायरी
जहां तेरा नक्शे-कदम देखते हैं – मिर्ज़ा ग़ालिब – हिंदी शायरी

जहां तेरा नक्शे-कदम देखते हैं – मिर्ज़ा ग़ालिब – हिंदी शायरी

जहां तेरा नक्शे-कदम देखते हैं
ख़ियाबां ख़ियाबां इरम देखते हैं

दिल आशुफ़तगा खाले-कुंजे-दहन के
सुवैदा में सैरे-अदम देखते हैं

तिरे सरवे-कामत से, इक कद्दे-आदम
कयामत के फितने को कम देखते हैं

तमाशा कर ऐ महवे-आईनादारी
तुझे किस तमन्ना से हम देखते हैं

सुराग़े-तुफ़े-नाला ले दाग़े-दिल से
कि शब-रौ का नक्शे-कदम देखते हैं

बना कर फ़कीरों का हम भेस, ‘गालिब’
तमाशा-ए-अहले-करम देखते हैं

Conclusion

तो उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारा यह हिंदी शायरी जहां तेरा नक्शे-कदम देखते हैं अच्छा लगा होगा जिसे मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) जी ने लिखा है. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप Facebook Page, Linkedin, Instagram, और Twitter पर follow कर सकते हैं जहाँ से आपको नए पोस्ट के बारे में पता सबसे पहले चलेगा. हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यावाद. जय हिन्द.

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