तीन प्रेरणादायक नैतिक कहानियाँ हिंदी में – Three Inspirational Moral Stories in Hindi

प्रेरणादायक नैतिक कहानियाँ हिंदी में - Inspirational Moral Stories in Hindi
प्रेरणादायक नैतिक कहानियाँ हिंदी में - Inspirational Moral Stories in Hindi

Inspirational Moral Stories in Hindi:
दोस्तों! इस पोस्ट में आपको तीन कहानियां पढने को मिलेंगे, जो एक से बढ़कर एक हैं। इन कहानियों से आपको बहुत कुछ समझने और सिखने को मिलेगा।

प्रेरणादायक नैतिक कहानियाँ हिंदी में
Inspirational Moral Stories in Hindi

चींटी और हाथी

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एक बार की बात है,एक दिन एक चींटी पानी को पार करने की सोच रही थी, तो उसने देखा कि एक हाथी भी पुल को पार कर रहा है। 

उसने हाथी से कहा, “कैसे हो मेरे प्यारे दोस्त? क्या मैं तुम्हारी पीठ पर बैठ सकता हूँ, मुझे इस पुल को पार करना है और तुम्हे मेरा साथ भी मिल जायेगा?” 

हाथी ने चींटी से कुछ भी नहीं कहा वह शांत ही रहा। चींटी ने इधर देखा ना उधर वो झट से हाथी के ऊपर जा बैठी। उसे मन-ही-मन बहुत ही अच्छा लग रह था कि उसने एक हाथी को अपने साथ चलने पर मजबूर कर दिया है जो उससे कई गुणा ज्यादा बड़ा है। 

जब वे पुल पार कर रहे थे, चीटीं तेज आवाजं में बोली, ‘ध्यान से भाई, हम दोनों का बहुत भार हो गया है। कहीं ऐसा ना हो कि पुल ही टूट जाए।’ हाथी ने फिर कुछ नहीं कहा। 

पुल पार कर लेने के बाद, चीटीं बोली, ‘देखा, मैंने तुम्हे सुरक्षित पहुँचा दिया है!’ हाथी ने फिर कुछ नहीं कहा। अंत में चीटीं हाथी की पीठ से उतर गयी और बोली, ‘ये रहा मेरा कार्ड, जब भी आगे तुम्हे कभी मेरी ज़रूरत हो तो मुझे बुला लेना।’ 

हाथी को अचानक लगा-लगा कि उसे किसी कि फुशफुसाने कि आवाज़ आयी है। उसने मन का भ्रम समझ कर छोड दिया मानो उसे चीटीं के होने का पता ही नहीं था।

यही दो बातें हम सभी के साथ होती है। पहली, हम सब हाथी के सामान कई गुणों से संपन है। हम सब कुछ कर सकते है। 

इससे कोई फ़र्क़ नहीं परता कि आप क्या करते है, चीटीं जैसे नजरिये वाले लोग हमेशा सामने आकर तंग करते हैं, आलोचना करते है, हँसी उड़ाते हैं। पर आपको यह याद रखना होता है कि अपने दिल और दिमाग़ पर ज़्यादा भरोसा करना है। 

कोई दूसरा आपकी ख़ुशी को छीन नहीं सकता है। ऐसे लोगों को-को नज़रंदाज़ करना ही सही है, उनकी बातों को-को अनसुना कर जीवन में आगे बढ़ते रहना ही सबसे सही रहता है।

दूसरी बात यह कि हाथी पूरी तरह ज़िन्दगी से लबरेज़ है। चीटीं हमारा बेचैन रहने वाला अंह है जो दुसरो कि स्वीकृति पाने के लिए तरसता रहता है। जीवन हमारे अंह से कहीं अधिक विस्तृत है जो हर पल हमें सजग बनती है। सजग रहे, हाथी बनकर आगे बढ़ते रहे।

साहसी छोटा कछुआ

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एक बार कि बात हैं कि एक कछुआ जहाज़ पर रहता था। जहाज़ डूब गया। कुछ समय बाद कछुए ने ख़ुद को ऐसी जगह पाया, जहाँ सब ओर पानी था। सिवाय एक तरफ़ जो कि विशाल, पथरीला, और ऊँचा पहाड़ था। कछुआ कई दिनों से भूखा था। खाने को कुछ नहीं मिल रहा था। 

कछुए को अपनी मौत करीब दिखाई देने लगी। इस उम्मीद के साथ कि उस पार पहुचनें के बाद सिथितियाँ सब ठीक हो जाएगी, कछुए ने पहाड़ चढने का फ़ैसला किया।

जैसे–जैसे चढ़ाई शुरू हुई, बर्फ से ढका पहाड़ परेशानी खरी करने लगा। ठंड से जमने जैसी हालत होने लगी। कछुए को एक छोटा-सा तंग रास्ता दिखाई दिया, जो पहाड़ के दूसरी तरफ़ जा रहा था। समस्या यह थी कि उस रास्ते पर राक्षसों का कब्ज़ा था। 

जो अब चिल्ला रहे थे। उह-उह की अजीब-सी आवाजें वहाँ से आ रही थी। कछुआ बुरी तरह डर गया। वह अपना सिर खोल के अन्दर ले जाने कि सोच रहा था। परन्तु जब उसने अपने चारो तरफ़ देखा तो वहाँ कई मृत पशु परे दिखाई दिए।

उसे वे चेहरें डर व भये से दिखाई दिए। कछुए ने फ़ैसला किया कि वह अपने खोल के अन्दर नहीं जायेगा। नहीं तो वह भी दुसरें साथियों कि तरह यहीं परे-परे मर जायेगा। ऐसा सोचते ही उसने साहस जुटाते हुए आगे बढ़ने का फ़ैसला किया। वह राक्षस वाली दिशा में आगे बढ़ने लगा। 

जितना वह पास जा रहा था, उसे राक्षस का आकर बदलता दिखाई देता जा रहा था। जब वह बिल्कुल अंतिम सिरे तक पहुँच गया, तो उसे लगा कि जिसे वह राक्षस समझ रहा था, वह उंची-नीची पहारीयाँ थी, जिसने एक भयावह आकार ले लिया था। उह-उह कि आवाज़ भी और कुछ नहीं, उस छोटी गुफा से होकर बह रही हवा थी।

कछुआ चलता जा रहा था और अंततः उसने ख़ुद को एक सुंदर घाटी में पाया। वहाँ लकरियाँ ही लकरियाँ, बहुत सारा खाने का भोजन भी। वह वहाँ ख़ुशी-ख़ुशी रहने लगा और कुछ समय बाद हर जगह वह साहसी छोटा कछुआ नाम से मशहूर हो गया।

अप्प दीपों भव: (अपने दीपक ख़ुद बनो)

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एक समय की बात है, किसी साधु के आश्रम में एक युवक बहुत समय से रहता था। फिर एक दिन ऐसा संयोग आया कि उस युवक को आश्रम को छोड़कर वहाँ से विदा होना पड़ा। रात का समय था, बाहर बहुत ही घना अँधेरा छाया हुआ था।

युवक ने कहा – रोशनी की कुछ व्यवस्था करने की कृपा करें। उस साधु ने दीया जलाया, उस युवक के हाथ में दीया दे दिया और उसे सीढ़ियाँ उतारने के लिये ख़ुद उसके के साथ हो लिया। 

जब वह सीढ़ी पार कर चुका और आश्रम का द्वार भी पार कर चुका, तो उस साधु ने युवक को कहा की अब मैं अलग हो जाता हूँ, क्योंकि इस जीवन के रास्ते पर बहुत दूर तक कोई साथ नहीं दे सकता हैं। अच्छा हैं कि तुम रात के आदी हो जाओ, इससे पहले की मैं विदा हो पाऊँ। 

इतना कहकर उस घनी अंधेरी रात में साधु ने युवक के हाथ के दीये को फुंककर बुझा दिया। युवक घबराकर चिल्ला उठा-यह क्या पागलपन हुआ? अभी तो आश्रम के हम बाहर भी नहीं निकल पाए और आपने साथ भी छोड़ दिया और दीया भी बूझा दिया। रात अंधेरी हैं और रास्ता अनजान हैं।

साधु ने युवक से कहा–दूसरों के जलाये दीये का कोई मूल्य नहीं हैं। अपना दीया ही काम देता हैं। किसी दूसरे के दीये काम नहीं देते। ख़ुद के भीतर से प्रकाश निकले, तभी रास्ता प्रकाशित होता हैं, अन्य किसी तरह से रास्ता प्रकाशित नहीं हो सकता।

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विशेष धन्यवाद (Special Thanks):

Michelangelo Short Story In Hindiइस कहानी को रितेश कुमार सिंहा जी ने शेयर किया है। हमारी टीम इनका दिल से शुक्रया अदा करती है जो इन्होने इतनी अच्छी कहानी को हमारी टीम के साथ शेयर किया।

इनका फेसबुक पर अकाउंट है जिसमें इनका नाम Ritesh Kumar Sinha (Click Here)है। आपलोग भी जाकर उनके उत्साह को बाधा सकते हैं।

तो दोस्तों आपको ये कहानी कैसी लगी? आप हमें कमेंट बॉक्स में बताएं और रितेश जी को भी बतायें। कमेंट बॉक्स आपको पोस्ट के लास्ट में मिलेगा।

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-धन्यवाद 

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