एक बार की बात है,एक दिन एक चींटी पानी को पार करने की सोच रही थी, तो उसने देखा कि एक हाथी भी पुल को पार कर रहा है।
उसने हाथी से कहा, “कैसे हो मेरे प्यारे दोस्त? क्या मैं तुम्हारी पीठ पर बैठ सकता हूँ, मुझे इस पुल को पार करना है और तुम्हे मेरा साथ भी मिल जायेगा?”
हाथी ने चींटी से कुछ भी नहीं कहा वह शांत ही रहा। चींटी ने इधर देखा ना उधर वो झट से हाथी के ऊपर जा बैठी। उसे मन-ही-मन बहुत ही अच्छा लग रह था कि उसने एक हाथी को अपने साथ चलने पर मजबूर कर दिया है जो उससे कई गुणा ज्यादा बड़ा है।
जब वे पुल पार कर रहे थे, चीटीं तेज आवाजं में बोली, ‘ध्यान से भाई, हम दोनों का बहुत भार हो गया है। कहीं ऐसा ना हो कि पुल ही टूट जाए।’ हाथी ने फिर कुछ नहीं कहा।
पुल पार कर लेने के बाद, चीटीं बोली, ‘देखा, मैंने तुम्हे सुरक्षित पहुँचा दिया है!’ हाथी ने फिर कुछ नहीं कहा। अंत में चीटीं हाथी की पीठ से उतर गयी और बोली, ‘ये रहा मेरा कार्ड, जब भी आगे तुम्हे कभी मेरी ज़रूरत हो तो मुझे बुला लेना।’
हाथी को अचानक लगा-लगा कि उसे किसी कि फुशफुसाने कि आवाज़ आयी है। उसने मन का भ्रम समझ कर छोड दिया मानो उसे चीटीं के होने का पता ही नहीं था।
यही दो बातें हम सभी के साथ होती है। पहली, हम सब हाथी के सामान कई गुणों से संपन है। हम सब कुछ कर सकते है।
इससे कोई फ़र्क़ नहीं परता कि आप क्या करते है, चीटीं जैसे नजरिये वाले लोग हमेशा सामने आकर तंग करते हैं, आलोचना करते है, हँसी उड़ाते हैं। पर आपको यह याद रखना होता है कि अपने दिल और दिमाग़ पर ज़्यादा भरोसा करना है।
कोई दूसरा आपकी ख़ुशी को छीन नहीं सकता है। ऐसे लोगों को-को नज़रंदाज़ करना ही सही है, उनकी बातों को-को अनसुना कर जीवन में आगे बढ़ते रहना ही सबसे सही रहता है।
दूसरी बात यह कि हाथी पूरी तरह ज़िन्दगी से लबरेज़ है। चीटीं हमारा बेचैन रहने वाला अंह है जो दुसरो कि स्वीकृति पाने के लिए तरसता रहता है। जीवन हमारे अंह से कहीं अधिक विस्तृत है जो हर पल हमें सजग बनती है। सजग रहे, हाथी बनकर आगे बढ़ते रहे।